मिड डे मील की ताजा खबर 2023 मिड डे मील योजना कब शुरू हुई, मिड डे मील की ताजा अपडेट, मिड डे मील योजना क्या है

मिड डे मील की ताजा खबर 2023: आपको बता दें की मिड डे मील योजना का इतिहास बहुत पुराना है। कहा जाता है कि ब्रिटिश गवर्नमेंट में पहली बार 1925 में मद्रास कॉरपोरेशन द्वारा मिड डे मील योजना की शुरुआत वंचित बच्चों को भोजन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से की गई थी। बाद में स्वतंत्र भारत में भी कई स्टेट्स में भी यह योजना शुरू की गई। लेकिन आज भी में मिड डे मील योजना भारत के लगभग सभी स्टेट्स में चलती है। इस योजना ने न केवल गरीब और वंचित बच्चों की भूख मिटाने का काम किया है, बल्कि सही भोजन के जरीए बच्चों को कुपोषण से भी बचाया है। और यह कार्यक्रम लड़कियों को स्कूल भेजने में वरदान साबित हुआ है।

मिड डे मील योजना क्या है

मिड डे मिल योजना आज के समय में एक बहुत बड़ी योजना है। 1997 के बाद पैदा हुए और सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले हर बच्चे ने इसका फायदा उठाया होगा। लेकिन क्या हमने कभी यह जानने की कोशिश की है कि आखिर ये मिड डे मील योजना क्या है? और हमारे बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए इस योजना में हमारा क्या योगदान है। नहीं, कोई बात नहीं, आज हम आपके साथ इस योजना के बारे में उतनी ही जानकारी साझा करने जा रहे हैं जितनी हम एकत्र कर सकते थे। मिड डे मील योजना भारत सरकार द्वारा चलाई जाने वाली एक योजना है।

मिड डे मील योजना कब शुरू हुई

यह योजना भारत में 15 अगस्त 1995 को शुरू की गई थी। इस योजना का लक्ष्य सरकारी प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को पौष्टिक खाना प्रोवाइड कराना और उनके माता-पिता को बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित करना था। पहले चरण में यह योजना 2408 परसेंट में शुरू की गई थी और अप्रैल 2002 से इस योजना का बढ़ाकर सभी सरकारी प्राथमिक विद्यालयों और उन स्कूलों में कर दिया गया है जहाँ कक्षा 1 से कक्षा 5 तक की शिक्षा बच्चों को दी जाती है।उसके बाद इसे सेकंडरी स्कूल यानि कक्षा 8 तक लागू किया गया। इस योजना के अनुसार सरकारी प्राईमरी विद्यालयों में पढ़ने वाले हर एक बच्चे को मिड डे मील योजना के भोजन में 300 कैलोरी और 8 से 12 ग्राम प्रोटीन मिलना चाहिए। बाद में सितंबर 2004 में कैलोरी और प्रोटीन की मात्रा बढ़ाकर 450 और 12 ग्राम कर दी गई।

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मिड डे मील योजना के लाभ

भारत में कई राज्य ऐसे है जहां पर खाने की कमी है।यानी वो लोग जो दिन भर अपना पेट भरने के लिए जुगाड़ ढूंढते रहते हैं। मिड डे मील योजना उन क्षेत्रों के लिए वरदान साबित हुई है। जो अपने बच्चों का पेट भरने के काम में लगा देते थे। आजकल वे बच्चो को स्कूल भेजने लगे हैं। इस उम्मीद में कि कम से कम एक बार हमें स्कूल से खाना तो मिल ही जाएगा।

  • मिड डे मील योजना में ऐसा रूल है कि जिस बच्चे की उपस्थिति 80 प्रतिशत या 80 प्रतिशत से अधिक होगी वह अगले वर्ष तक इस योजना का लाभ का लाभ उठा सकेंगे। इससे भी बच्चे रोज़ स्कूल जाने लगे।
  • इससे पहले ग्रामीण क्षेत्रों और आदिवासी क्षेत्रों में बहुत कम बच्चो को या लड़कियों को स्कूल नहीं भेजा जाता था। लेकिन मिड डे मील योजना के चलते बच्चों के माता-पिता ने भी लड़कियों को स्कूल भेजना शुरू कर दिया।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ बच्चे थे जो स्कूल जाते समय बहुत रोते थे और उन्हें स्कूल जाना पसंद नहीं था लेकिन तब से इस योजना से उनके स्कूल में खाना शुरू हो गया है।
  • जो बच्चे गरीबी की वजह से घर में सही भोजन नहीं मिल पाता था और उसका सही तरीके से शारीरिक विकास नहीं हो पा रहा था। अब उन्हें स्कूल में सही भोजन मिलता है।
  • मिड डे मील योजना से सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने का मतलब है कि योजना के तहत स्कूल में पढ़ने वाले सभी बच्चे चाहे वे किसी भी जाति के हों, उन्हें एक साथ खाना खाना होता है जो की सामाजिक समानता को बढ़ावा देता है।
  • ऐसे गरीब लोग जिन्हें यह नहीं पता कि अपने बच्चे को एक बार में एक बार खाना खिलाने के लिए कितने कठिनाइयों का सामना करना पड़ता हैं। वे अब अपने बच्चे को यह सोचकर स्कूल भेजते हैं कि कम से कम एक समय का खाना तो उन्हें मिलेगा।
  • मिड डे मील योजना के आने से स्कूलों में लड़कियों की पॉपुलेशन भी बढ़ी है। इसका मतलब है कि लोग अब लड़कियों को भी स्कूल भेज रहे हैं।
  • स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के बीच समान जेंडर डिस्क्रिमिनेशन को बढ़ावा देना, जब से लड़कियों ने स्कूल जाना शुरू किया। तब से स्कूलों में लड़कियों और लड़कों की संख्या में कोई खास अंतर नहीं आया है।
  • इस योजना से बच्चों में कई अच्छी आदतें भी सीखते हैं। जैसे खाना खाने से पहले हाथ धोना, खाने के बाद हाथ धोना, खुद की थाली साफ करना, खाने के बाद साफ पानी पीना आदि।

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मिड डे मील योजना की विशेषताएं

  • इस योजना का लक्ष्य बच्चों को मानसिक रूप से मजबूत बनाना और पौष्टिक आहार देकर उनकी शिक्षा ग्रहण करने की क्षमता को बढ़ाना है।
  • भारत की तरह, सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी जाति व्यवस्था चल रही है। इसलिए मिड डे मील योजना का लक्ष्य भी बच्चों में जाति, जाति, छुआछूत जैसी विचारधाराओं को पनपने नहीं देना है।
  • अगर एक घर में दो लड़कियां और एक लड़का है, तो भारतीय ग्रामीण समाज में माता-पिता लड़के की शिक्षा को बढ़ावा देते हैं। इसलिए इस योजना का लक्ष्य पढ़ाई के नाम पर किए जाने वाले लैंगिक भेदभाव को खत्म करना भी है।
  • मिड डे मील योजना के कारण स्कूलों में लड़कियों की संख्या में काफी बढ़ गई है। इसलिए स्कूलों में लड़कियों की संख्या बढ़ाना भी इस योजना का लक्ष्य है।
  • अब यदि इस योजना का लाभ लेने के लिए अधिक से अधिक बच्चे स्कूलों में प्रवेश ले रहे हैं तो निरक्षरता दर कम होगी। इसलिए इस योजना का लक्ष्य भूख को जड़ से खत्म करना है, साथ ही स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ाना भी है।
  • इससे पहले यह मिड डे मील योजना कक्षा 1 से कक्षा 5 तक के छात्रों के लिए चलाई जाती थी, लेकिन जब देखा गया कि कुछ लोग अपने बच्चों को कक्षा 5 से आगे ले जाने के लिए अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज रहे हैं तो यह योजना कक्षा 5 तक के बच्चों के लिए बढ़ा दी गई थी।
  • बच्चों को पौष्टिक आहार देकर कुपोषण से बचाना।
  • गरीब लोगों को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित करना।

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मध्याह्न भोजन योजना की गाइडलाइंस

  • सरकार की ओर से जारी गाइडलाइंस में हम सिर्फ उन्हीं गाइडलाइंस के बारे में बात करेंगे, जिन्हें एक पैरेंट के तौर पर आपको जानना जरूरी होगा।
  • इस योजना के तहत मध्याह्न भोजन के भोजन का स्वाद स्कूल के किसी एक शिक्षक को लेना होता है। इसके अलावा माता-पिता या दो हो सकते हैं, चाहे वे स्कूल प्रबंधन समिति के सदस्य हों या नहीं। उन्हें अपने भोजन का स्वाद भी लेना चाहिए। इसके बाद इसे बच्चों में बांटना है।
  • खाने-पीने की चीजों को स्टोर करने के लिए भारत सरकार ने किचन के साथ-साथ स्टोरेज हाउस का भी जिक्र किया है। इसलिए खाद्य सामग्री को भण्डारण गृह में ही रखना आवश्यक है। गांव के प्रधानाध्यापक के घर या ग्राम प्रधान के घर में खाद्य सामग्री का भंडारण नहीं करना चाहिए।
  • मिड डे मील योजना के दिशा-निर्देशों के अनुसार दाल, चावल, फल, मिठाई, गैस सहित प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाले प्रत्येक बच्चे पर एक दिन में 3.86 पैसे खर्च किए जाएं। और उच्च प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाले पर 5.78 रुपये खर्च करना अनिवार्य है।
  • डबल फोर्टिफाइड नमक जो आयोडीन और आयरन से भरपूर होता है उसे खाना बनाते समय इस्तेमाल करना चाहिए।
  • मिड-डे मील खाने से यदि किसी बच्चे की तबीयत बिगड़ती है तो स्कूल के प्रधानाध्यापक की सबसे पहली जिम्मेदारी होती है कि वह इसकी सूचना जिला शिक्षा अधिकारी/जिला स्वास्थ्य अधिकारी या जिलाधिकारी को दें।

मिड डे मील की ताजा खबर 2023

स्कूलो में मिड डे मील योजना के तहत लगभग हर दूसरे दिन एक ही भोजन बनाया जाता है। जो 1 दिन पहले पकाया गया था। कक्षा के घंटे कम होने का मतलब है कि कक्षा में शिक्षकों की उपस्थिति के घंटों पर असर पड़ रहा है। चूंकि शिक्षकों को भी इस योजना के तहत बनने वाले भोजन की व्यवस्था देखनी होती है, जिससे वे कक्षा को कम समय दे पाते हैं। सही साफ सफाई का अभाव मिड डे मील योजना की शुरूआत के बाद भी बच्चों में कमजोरी/कुपोषण देखा गया है, जो स्पष्ट रूप से ये दिखता है कि बच्चों के खाने-पीने में अभी भी स्वस्थ भोजन की कमी है। रसोइयों को सही काम का भुगतान न होने के कारण रसोइया लापरवाही से काम करते हैं, और सफाई का भी सही तरीके से ध्यान नहीं रखते हैं।फिर भी कुछ कट्टर रूढ़िवादी जातिवादी या तो अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते हैं, या उन्हें वहाँ खाने की इजाजत नहीं देते हैं। क्योंकि स्कूल के सभी बच्चों को एक साथ खिलाने का रूल है और ज्यादातर स्कूलों में एससी, एसटी से रसोइया रखने का रूल है।मिड डे मील योजना के तहत माता-पिता की भागीदारी में कमी।कई जगह ऐसी भी हैं जहां खाने के लिए थाली तक नहीं है। जिससे छात्रों को पत्तों पर खाना खाना पड़ रहा है।खाने-पीने की चीजों और खाने के पैसे की डिलीवरी में देरी।

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Editor

Harshitaa Mishraa works as a professional content writer. Currently working as a senior content writer & editor at Sarkarinewsportal and also working for many other websites. Harshitaa Mishraa is currently pursuing M.A and also has a degree of B.A Arts. She is also preparing for UPSC.

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